श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी57. हरिदासजी द्वारा नाम-माहात्म्य
इनकी ऐसी युक्तियुक्त और सारगर्भित मधुर वाणी को सुनकर सभी को परम प्रसन्नता हुई। उसी सभा में गोपालचन्द्र चक्रवर्ती नाम का इन्हीं जमींदार का एक कर्मचारी बैठा था। वह बड़ा तार्किक था, उसने हरिदास की बात का खण्डन करते हुए कहा- ‘ये तो सब भावुकता की बातें हैं, जो पढ़-लिख नहीं सकते, वे ही इस प्रकार जोरों से नाम लेते फिरते हैं। यथार्थ ज्ञान तो शास्त्रों के अध्ययन से ही होता है। भगवन्नाम से कहीं दुःखों का नाश थोड़े ही हो सकता है? शास्त्रों में जो कहीं-कहीं नाम की इतनी प्रशंसा मिलती है, वह केवल अर्थवाद है। यथार्थ बात तो दूसरी ही है।’ हरिदास जी ने कुछ जोर देते हुए कहा- ‘भगवन्नाम में जो अर्थवाद का अध्यारोप करते हैं, वे शुष्क तार्किक हैं। वे भगवन्नाम के माहात्म्य को समझ ही नहीं सकते। भगवन्नाम में अर्थवाद हो ही नहीं सकता।’ इस पर गोपालचन्द्र चक्रवर्ती ने भी अपनी बात पर जोर देते हुए कहा- ‘ये मूर्खों को बहकाने की बातें हैं। अजामिल-जैसा पापी पुत्र का नारायणनाम लेते ही तर गया। क्या घट-घटव्यापी भगवान इतना भी नहीं समझ सकते थे कि इसने अपने पुत्र को बुलाया है? यह अर्थवाद नहीं तो क्या है?’ हरिदास जी ने कहा- ‘इसे अर्थवाद कहने वाले स्वयं अनर्थवादी हैं, उनसे मैं कुछ नहीं कह सकता।’ जोश में आकर गोपाल चक्रवर्ती ने कहा- ‘यदि भगवन्नाम-स्मरण करने से मनुष्य की नीचता जाती रहे तो मैं अपनी नाक कटा लूँ।’ हरिदास जी ने भी जोश में आकर कहा- ‘यदि भगवन्नाम के जप से नीचताओं का जड़-मूल से नाश न हो जाय तो मैं अपने नाक-कान दोनों ही कटाने के लिये तैयार हूँ।’ बात को बहुत बढ़ते देखकर लोगों ने दोनों को ही शान्त कर दिया। जमींदार उस आदमी से बहुत असन्तुष्ट हुए। उसे वैष्णवापराधी और भगवन्नामविमुख समझकर जमींदार ने उसे नौकरी से पृथक कर दिया। सुनते हैं कि कालान्तर में उसकी नाक सचमुच कट गयी। इसी प्रकार की एक दूसरी घटना हरिनदी नामक ग्राम में हुई। हरिनदी नामक ग्राम के एक पण्डितमानी, अहंकारी ब्राह्मण को अपने शास्त्रज्ञान का बड़ा गर्व था। हरिदास जी चलते-फिरते, उठते-बैठते उच्च स्वर से- हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। -इस महामन्त्र का सदा जप करते रहते थे। इन्हें मुसलमान और महामन्त्र का अनधिकारी समझकर उसने इनसे पूछा- ‘मुसलमान के लिये इस उपनिषद के मन्त्र का जप करना कहाँ लिखा है? यह तुम्हारी अनधिकार चेष्टा है और जो तुम्हें भगवद्भक्त कहकर तुम्हारी पूजा करते हैं, वे भी पाप करते हैं। |