श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी5. व्यासोपदेश
इस युग के महापुरुषों में महाप्रभु चैतन्यदेवका स्थान सर्वोच्च कहा जाता है। वे भक्ति के मूर्तिमान अवतार थे, प्रेम की सजीव मूर्ति थे। उनके जीवन में परम वैराग्य, महान त्याग, अलौकिक प्रेम, अभूतपूर्व उत्कण्ठा और भगवान के लिये विलक्षण छटपटाहट थी। उनका अवतार संसार के कल्याण के ही निमित्त हुआ था। उन महापुरुष के जीवन से अब तक असंख्या जीवों का कल्याण हुआ है और आगे भी होगा। ऐसे महापुरुष का जीवन कल्याण की इच्छा रखने वाले जीवों के लिये निर्भ्रान्त पथ-प्रदर्शन बन सकता है। चैतन्य-चरित्र अगाध है और दुर्ज्ञेय है। साधारण जीवों के समझ में न तो वह आ ही सकता है, न दुष्कृति पुरुष उसे श्रवण ही कर सकते हैं। सौभाग्य से ऐसे चरित्रों के श्रवण का सुयोग मिलता है, सुनकर उसे यथावत समझने वाले तो विरले ही पुरुष होते हैं, जिनके ऊपर उनकी कृपा होती है वे ही समझ सकते हैं। फिर उन चरित्रों का कथन करना तो बहुत ही कठिन काम है। मुझमें न भक्ति है, न बुद्धि। शास्त्रों का ज्ञान भी यथावत नहीं। चैतन्य के दुर्ज्ञेय चरित्र को भला मैं क्या समझ सकता हूँ। किंतु जितना भी कुछ समझ सका हूँ, उसका ही जैसा बन सकेगा, कथन करूँगा। मुझे पूर्ण आशा है कि कल्याण-मार्ग के पथिकों की मेरी इस टूटी-फूटी भाषा से अपने साधन में बहुत कुछ सहायता मिल सकेगी, क्योंकि चैतन्य-चरित्र इतना मधुर है कि वह चाहे कैसी भी भाषा में लिखा जाय, उसकी माधुरी कम नहीं होने की। |