श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी49. व्यासपूजा
प्रभु की इस बात को सुनकर निताई नींद से जागे हुए पुरुष की भाँति अपने चारों ओर देखने लगे। मानो वे किसी विशेष वस्तु का अन्वेषण कर रहे हों। इधर-उधर देखकर उन्होंने अपने हाथ की माला व्यासदेव जी को तो पहनायी नहीं, जल्दी से गौरांग के सिर पर चढ़ा दी। प्रभु के लम्बे-लम्बे घुँघराले बालों में उलझकर वह माला बड़ी ही भली मालूम पड़ने लगी। सभी भक्त आनन्द में बेसुध-से हो गये। प्रभु कुछ लज्जित-से हो गये। नित्यानन्द जी प्रेम में विभोर होने के कारण मूर्च्छित होकर गिर पड़े। अहा, प्रेम हो तो ऐसा हो, अपने प्रिय पात्र में ही सभी देवी-देवता और विश्व का दर्शन हो जाय। गौरांग को ही सर्वस्व समझने वाले निताई का उनके प्रति ऐसा ही भाव था। उनका मनोगत भाव था- गौरांग ही उनके सर्वस्व थे। उनकी भावना के अनुसार उन्हें प्रत्यक्ष फल भी प्राप्त हो गया। उनके सामने गौरांग की यह नित्य की मानुषिक मूर्ति विलुप्त हो गयी। अब उन्हें गौरांग की षड्भुजी मूर्ति का दर्शन होने लगा। उन्होंने देखा, गौरांग के मुख की कान्ति कोटि सूर्यों की प्रभा से भी बढ़कर है। उनके चार हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म विराजमान हैं, शेष दो हाथों में वे हल-मूसल को धारण किये हुए हैं। नित्यानन्द जी प्रभु के इस अद्भुत रूप के दर्शनों से अपने को कृतकृत्य मानने लगे। उनके नेत्र उन दर्शनों से तृप्त ही नहीं होते थे। उनके दोनों नेत्र बिलकुल फटे-के-फटे ही रह गये, पलक गिरना एकदम बंद हो गया। नेत्रों की दोनों कोरों से अश्रुओं की धारा बह रही थी। शरीर चेतनाशून्य था। भक्तों ने देखा उनकी साँस चल नहीं रही है, उनका शरीर मृतक पुरुष की भाँति अकड़ा हुआ पड़ा था, केवल मुख की अपूर्व ज्योति को देखकर और नेत्रों से निकलते हुए अश्रुओं से ही यह अनुमान लगाया जा सकता था कि वे जीवित हैं। भक्तों को इनकी ऐसी दशा देखकर बड़ा भय हुआ। श्रीवास आदि सभी भक्तों ने भाँति-भाँति की चेष्टाओं द्वारा उन्हें सचेत करना चाहा, किंतु उन्हें बिलकुल भी होश नहीं हुआ। प्रभु ने जब देखा कि नित्यानन्द जी किसी भी प्रकार नहीं उठते, तब उनके शरीर पर अपना कोमल कर फेरते हुए प्रभु अत्यन्त ही प्रेम के साथ कहने लगे- ‘श्रीपाद! अब उठिये। जिस कार्य के निमित्त आपने इस शरीर को धारण किया है, अब उस कार्य के प्रचार का समय सन्निकट आ गया है। उठिये और अपनी अहैतु की कृपा के द्वारा जीवों का उद्धार कीजिये। सभी लोग आपकी कृपा के भिखारी बने बैठे हैं, जिसका आप उद्धार करना चाहें उसका उद्धार कीजिये। श्रीहरि के सुमधुर नामों का वितरण कीजिये। यदि आप ही जीवों के ऊपर कृपा करके भगवन्नाम का वितरण न करेंगे तो पापियों का उद्धार कैसे होगा?’ |