श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी45. श्रीनृसिंहावेश
प्रभु ने उसे अपने पास बुलाकर कहा- ‘बेटी! नारायणी! तुम श्रीकृष्ण-प्रेम में उन्मत्त होकर रुदन तो करो! बस, इतना सुनना था कि वह चार वर्ष की बालिका श्रीकृष्ण-प्रेम में मूर्च्छित होकर गिर पड़ी और जोरों से ‘हा कृष्ण! हा कृष्ण!!’ कहकर रुदन करने लगी। उसके इस प्रकार रुदन को सुनकर सभी स्त्री-पुरुष आश्चर्यसागर मं गोते खाने लगे। सभी की आँखों से आँसू बहने लगे। हँसते-हँसते प्रभु ने कहा- ‘इसी प्रकार हम सबसे कृष्ण-कीर्तन करायेंगे।’ इस प्रकार श्रीवास को आश्वासन देकर प्रभु मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े और बहुत देर के अनन्तर होश में आये। होश में आने पर आप आश्चर्य के साथ इधर-उधर देखने लगे अैर बोले- ‘पण्डित जी! मैं यहाँ कैसे आ गया? मैंने कोई चपलता तो नहीं कर डाली? आप तो मेरे पिता के समान हैं, मेरे सभी अपराधों को आप सदा से क्षमा करते आये हैं। यदि मुझसे कोई चपलता हो भी गयी हो तो उसे क्षमा कर दीजियेगा। मुझे कुछ भी मालूम नहीं है कि मैं यहाँ कैसे आया और मैंने क्या-क्या कहा?’ प्रभु की इस प्रकार भोली-भाली बातें सुनकर श्रीवास पण्डित ने विनीत भाव से कहा- ‘प्रभु! मुझे चिरकाल तक भ्रम में रखा, अब फिर से मुझे भ्रम में न डालिये, मेरी अब छलना न कीजिये। अब तो मुझे आपका सतस्वरूप मालूम पड़ गया है, आपके चरणों में इसी प्रकार अनुराग बना रहे। ऐसा आशीर्वाद दीजिये।’ श्रीवास के ऐसा कहने पर प्रभु मन-ही-मन प्रसन्न हुए और कुछ लजाते हुए-से अपने घर की ओर चले गये। |