श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी45. श्रीनृसिंहावेश
इसके अनन्तर जोरों से हुंकार करते हुए प्रभु ने गम्भीर स्वर में कहा- ‘श्रीवास! तुम्हें चिन्ता नहीं करनी चाहिये। तुम अनन्य भाव से हमारा ही तो स्मरण-कीर्तन करते हो, फिर डर की क्या बात? बादशाह की क्या ताकत है जो हमारे विरुद्ध कुछ कर सकेगा? यदि वैष्णवों को पकड़ने के लिये नाव आवेगी तो सबसे पहले नाव में हम ही चढ़ेंगे और जाकर बादशाह से कहेंगे कि तुमने कीर्तन रोकने की आज्ञा दी है? यदि काजियों के कहने से तुमने ऐसा किया है तो उन्हें यहाँ बुलाओ और वे अपने शास्त्र के विश्वास के अनुसार प्रार्थना करके सभी से ‘अल्लाह’ या ‘खुदा’ कहलवावें। नहीं तो हम सभी हिन्दू, यवन, पशु-पक्षी आदि जीवों से ‘कृष्ण-कृष्ण’ कहलाते हैं। इस प्रकार सभी जीवों के मुख से श्रीकृष्ण-कीर्तन कराकर हम संकीर्तन का महत्त्व प्रकाशित करेंगे और यवनों से भी कृष्ण कहलायेंगे। यदि इतने पर भी वह न मानेगा तो हम उसका संहार करेंगे। तुम किसी बात की चिन्ता मत करो, निर्भय रहो। हम तुम्हें अभी बताते हैं कि यह सब किस प्रकार हो सकेगा।’ इतना कहकर प्रभु ने श्रीवास पण्डित की भतीजी को अपने पास बुलाया। उसका नाम नारायणी था, उसकी अवस्था लगभग चार वर्ष की होगी। |