श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी44. धीर-भाव
संकीर्तन के विरोधियों ने संकीर्तन को रोकने के लिये भाँति-भाँति के उपाय किये, लोगों में उनके प्रति बुरे भाव उत्पन्न किये, लोगों को संकीर्तन के विरुद्ध उभाड़ा, उसकी अनेकों प्रकार से निन्दा की, किंतु वे सभी कामों में असफल ही रहे। इस प्रकार महाप्रभु अपने प्रेमी भक्तों के सहित श्रीकृष्ण-संकीर्तन में सदा संलग्न रहने लगे, किंतु कुछ बहिर्मुख वृत्तिवाले पुरुष संकीर्तन के विरोधी बन गये। रात्रिभर संकीर्तन होता था, भक्तगण जोरों से ‘हरि बोल’, ‘हरि बोल’ की ध्वनि करते। आस-पास के लोगों के निद्रासुख में विघ्न पड़ता, इसलिये वे भाँति-भाँति से कीर्तन के विरुद्ध भाव फैलाने लगे। कोई कहता- ‘ये सब लोग पागल हो गये हैं, तभी तो रात्रिभर चिल्लाते रहते हैं, क्या बतावें, इनके कारण तो सोना भी हराम हो गया है।’ कोई कहता- ‘सब एक-से ही इकट्ठे हो गये हैं। ज्ञान, योग, तप, जप में तो बुद्धि की आवश्यकता होती है, परिश्रम करना पड़ता है। इसमें कुछ करना-धरना तो पड़ता ही नहीं। चिल्लाना ही है, सो सभी तरह के लोग मिलकर चिल्लाते रहते हैं।’ कोई बीच में ही कह उठता- ‘अजी! हत्या की जड़ तो यह श्रीवासिया बामन ही है। भीख के रोट लग गये हैं! माँगकर खाते हैं, मस्ती आ गयी है, चार पैसे पास में हो गये हैं, उन्हीं की गर्मी के कारण रात्रि भर चिल्लाता रहता है। और भी दस-बीस बेकार लोगों को इकट्ठा कर लिया है। इसके पीछे हम सभी लोगों का नाश होगा।’ इतने में ही एक कहने लगा- ‘मैंने आज ही सुना है, राजा की तरफ से दो नावें सभी कीर्तन करने वालों को बाँधकर ले जाने के लिये आ रही हैं। साथ में एक फोज भी आवेगी जो श्रीवास के घर को तोड़-फोड़कर गंगा जी में बहा देगी और सभी कीर्तन करने वालों को पकड़ ले जायगी।’ इस बात से भयभीत होकर कुछ लोग कहने लगे- ‘भाई! इसमें हमारा तो कुछ दोष है ही नहीं, हम तो साफ कह देंगे कि हम कीर्तन में जाते ही नहीं, अमुक-अमुक लोग किवाड़ बंद करके भीतर न जाने क्या-क्या किया करते हैं!’ कुछ लोगों ने सम्मति दी- ‘जब तक फौज न आने पावे उससे पहले ही क़ाज़ी से जाकर कीर्तन की शिकायत कर आवें और उससे जता आवें कि इस वेदविरुद्ध, अशास्त्रीय कार्य में हमारी बिलकुल सम्मति नहीं है। न जाने ये स्त्रियों को साथ लेकर क्या-क्या कर्म करते रहते हैं! |