श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी38. वही प्रेमोन्माद
प्रभु के सब विद्यार्थियों ने जब सुना कि गुरुजी गयाधाम की यात्रा करके लौट आये हैं, तो एक-एक करके उनके घर पर आने लगे और पाठशाला में चलकर पढ़ाने की प्रार्थना करने लगे। सबके बहुत आग्रह करने पर प्रभु पाठशाला में पढ़ाने के निमित्त गये। किन्तु वे पढ़ावें क्या, लौकिक शास्त्रों को तो वे एकदम भूल ही गये, अब वे श्रीकृष्ण-कीर्तन के अतिरिक्त किसी भी विषय को नहीं कह सकते। उसी पाठ को विद्यार्थियों के लिये पढ़ाने लगे- ‘भैया! इन संसारी शास्त्रों में क्या रखा है? श्रीकृष्ण का नाम ही एकमात्र सार है, वह मधुरातिमधुर है। उसी का पान करो, इन लौकिक शास्त्रों से क्या अभीष्ट सिद्ध होगा? प्राणिमात्र के आश्रय-स्थान श्रीकृष्ण ही हैं। संसार की सृष्टि, स्थिति ओर लय उन ही श्रीकृष्ण की इच्छामात्र से होता रहता है। वे आनन्द के धाम हैं, सुखस्वरूप हैं। उनके गुणों का आर्त होकर गान करते रहना मनुष्यों का परम पुरुषार्थ है।’ इतना कहते-कहते प्रभु उच्च स्वर से कृष्ण-कीर्तन करने लगे। इन बातों को श्रवण करके कुछ विद्यार्थी तो आनन्द-सागर में मग्न हो गये। वे तो बाह्यज्ञान-शून्य होकर परमानन्द का अनुभव करने लगे। कुछ ऐसे भी थे, जो पुस्तक की विद्या को ही सर्वस्व समझते थे। भट्टाचार्य और शास्त्री बनना ही जिनके जीवन का एकमात्र चरम लक्ष्य था, वे कहने लगे- ‘गुरु जी! आप कैसी बातें कर रहे हैं? हमें इन बातों से क्या प्रयोजन? इन बातों का विचार तो वैष्णव भक्त करें। हमें तो हमारी पाठ्य पुस्तक का पाठ पढ़ाइये। हम यहाँ पाठशाला में भक्ति-तत्त्व की शिक्षा लेने के लिये नहीं आये हैं, हमें तो व्याकरण, अलंकार तथा न्याय आदि पुस्तकों के पाठों को पढ़ाइये।’ उन विद्यार्थियों की ऐसी बातें सुनकर प्रभु ने कहा- ‘भाई! आज हमारी प्रकृति स्वस्थ नहीं है। आज आप लोग अपना-अपना पाठ बंद रखिये, पुस्तकों को बाँधकर रख दीजिये। चलो, अब गंगा-स्नान करने चलें। कल पाठ की बात देखी जायगी।’ इतना सुनते ही सभी विद्यार्थियों ने अपनी-अपने पुस्तकें बाँध दीं और वे प्रभु के साथ गंगा-स्नान के निमित्त चल दिये। गंगा जी पर पहुँचकर बहुत देर तक जल-विहार होता रहा। रात्रि हो जाने पर प्रभु लौटकर घर आये और विद्यार्थी अपने-अपने स्थानों को चले गये। दूसरे दिन महाप्रभु फिर पाठशाला में पहुँचे। प्रभु के आसनासीन हो जाने पर विद्यार्थियों ने अपनी-अपनी पुस्तकों में से प्रश्न पूछना आरम्भ कर दिया। कोई भी विद्यार्थी इनसे कैसा भी प्रश्न पूछता उसका ये श्रीकृष्णपरक ही उत्तर देते। कोई विद्यार्थी पूछता- ‘सिद्धवर्णसमाम्नाय बताइये?’ आप उत्तर देते- ‘नारायण ही सब वर्णों में सिद्ध वर्ण हैं।’ कोई पूछता- ‘वर्णों की सिद्धि किस प्रकार से होती है?’ |