श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी37. नदिया में प्रत्यागमन
महाप्रभु ने कहा- ‘हाँ, प्रयत्न करूँगा, श्रीकृष्ण कृपा करेंगे तो सब कुछ होगा। सब उन्हीं के ऊपर निर्भर है।’ इस प्रकार उन्हें आश्वासन देकर फिर आप मुकुन्द संजय के चण्डीमण्डप में, जहाँ आपकी पाठशाला थी, वहाँ आये। संजय महाशय बड़े ही आनन्द के साथ प्रभु से मिले। उनके पुत्र पुरुषोत्तम संजय ने प्रभु के पादपद्मों में श्रद्धाभक्ति के साथ प्रणाम किया। प्रभु ने उसे आलिंगन किया। इस प्रकार दोनों पिता-पुत्र प्रभु के दर्शनों से परम प्रसन्न हुए। स्त्रियों ने जब प्रभु के आगमन के समाचार सुने तो वे बड़ी ही आनन्दित हुईं और परस्पर में भाँति-भाँति की बातें कहने लगीं। कोई कहती- ‘अब तो निमाई पण्डित एकदम बदल आये।’ कोई कहती- ‘बड़े भाग्य से भगवत-भक्ति प्राप्त होती है। यह सौभाग्य की बात है कि निमाई-जैसे पण्डित परम भागवत वैष्णव बन गये।’ इस प्रकार सभी अपनी-अपनी बुद्धि के अनुरूप भाँति-भाँति की बातें कहने लगीं। सबसे मिल-जुलकर निमाई घर लौट आये। |