श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी34. भक्तिस्त्रोत उमड़ने से पहले
बंगाल में सकामकर्मों की प्रधानता है, वहाँ के बहुत ही कम मनुष्य निष्कामकर्म का महत्त्व जानते हैं। अधिकांश लोग किसी-न-किसी कामना से ही सम्पूर्ण धार्मिक कार्यों को करते हैं। सकामकर्मों में पितृश्राद्ध को बहुत महत्त्व दिया गया है। स्मृतियों में तो पितृकर्मों से भी देवकर्मों की अधिक महत्ता दी गयी है। गृहस्थियों के लिये पितृकर्म ही मुख्य बताये गये हैं। पितृकर्मों में गयाधाम में जाकर पितरों के श्राद्ध करने का बहुत भारी माहात्म्य वर्णन किया गया है, इसलिये प्रतिवर्ष बंगाल से लाखों मनुष्य गया जी में पितृश्राद्ध करने आते हैं। दूसरे प्रान्तों से भी बहुत बड़ी संख्या में यात्री गया जी पितृश्राद्ध करने आते हैं, किन्तु बंगाल में इसका प्रचार अन्य प्रान्तों की अपेक्षा विशेष है। अबकी बार अन्य लोगों के साथ निमाई पण्डित ने भी गया में जाकर अपने पिता का श्राद्ध कर आने का विचार किया। किन्तु इनके विचार में अन्य लोगों की भाँति सकाम भावना नहीं थी, ये तो अपने अभाव को दूर करने और धार्मिक लोगों के भावों का आदर करने के निमित्त ही गया जी जाना चाहते थे। |