श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी34. भक्तिस्त्रोत उमड़ने से पहले
वास्तव में तो भक्ति तथा मुक्ति दो वस्तु हैं ही नहीं। एक ही वस्तु को दो नामों से पुकारते हैं, अपनी भावना के ही अनुसार एक प्रिय वस्तु को दो रूपों में देखते हैं। साध्य तो एक ही है- उसे चाहे भक्ति कह लो या मुक्ति और उसका साधन भी एक ही है- अनासक्तभाव से भगवत-सेवा या कर्तव्य समझकर निष्काम कर्म। हाँ, करने की प्रक्रियाएँ पृथक-पृथक अवश्य हैं, जिनका रुचि-वैचित्र्य के कारण अधिकारी-भेद से पृथकृ-पृथक होना आवश्यक ही है। एक में त्याग ही प्रधान है, घर को त्यागो, संग को त्यागो, आसक्ति को त्यागो, नाम-रूप को त्यागो, फिर अपने-आपको भी त्याग दो। दूसरे में प्रेम की प्रधानता है, अच्छे पुरुषों से प्रेम करो, भगवद्भक्तों से प्रेम करो, भगवत-चरित्रों से प्रेम करो, प्रेम से प्रेम करो। फिर जाकर प्रेम में समा जाओ। ये मुक्ति-भक्ति दो मार्ग हैं। महाप्रभु चैतन्यदेव का जीवन तो भक्तिमार्ग का एक प्रधान स्तम्भ है। उनके जीवन में शुद्ध भक्ति का परम पवित्र स्वरूप है, उसमें पक्षपात का लेश नहीं, दूसरे मार्ग के प्रति विद्वेष नहीं। किसी भी कर्म की उपेक्षा नहीं। संकुचित भावों की गन्ध नहीं। वहाँ तो शुद्ध प्रेम है! ज्यों-ज्यों आगे बढ़ना चाहो त्यों-ही-त्यों अधिकाधिक प्रेम करो, यही शिक्षा उसमें ओत-प्रोतरूप से भरी पड़ी है। उनका नाम लेकर आज जो बातें कही जाती हैं, वे चैतन्यदेव की कभी हो ही नहीं सकतीं। इसका साक्षी उनका प्रेममय जीवन ही है। ये साम्प्रदायिक विचार तो पीछे के संकुचित बुद्धि वाले लोगों के मस्तिष्क से निकले हैं। अपनी चीज का नाम कोई जो चाहे रख ले। कोई रोकने वाला थोड़े ही है। चैतन्य का जीवन तो परम प्रेममय, सभी को आश्रय देने वाला परम महान है, उसमें भला साम्प्रदायिक संकुचित भावों का क्या काम? इनके हृदय में प्राणिमात्र के भावों का आदर था। निमाई पण्डित का अब दूसरा विवाह हो गया है। विष्णुप्रिया उनके सब प्रकार से अनुकूल आचरण करती हैं। उनका स्वभाव हँसमुख है, वे सुशीला हैं, गृहकार्यों में चतुर हैं और अत्यन्त ही पतिपरायणा हैं, वे अपने पति को ही सर्वस्व समझती हैं। यह सब होते हुए भी निमाई का चित्त अब उदास ही रहता है। पता नहीं क्यों? अब उनकी वह चपलता न जाने कहाँ चली गयी? घंटों एकान्त में न जाने क्या सोचा करते हैं? अब उन्हें संसारी बातों से अनुराग नहीं है। अब उनका हृदय किसी विशेष वस्तु के लिये छटपटाता-सा दिखायी पड़ता है। अब वे अपने में किसी एक विशेष अभाव का-सा अनुभव करने लगे हैं। इस बात से उनके सभी स्नेही चिन्तित रहते हैं। |