श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी32. विष्णुप्रिया-परिणय
गोधूलि के शुभ लग्न में निमाई पण्डित ने विष्णुप्रिया का पाणिग्रहण किया। ब्राह्मणों ने स्वस्त्ययन पढ़ा, वेदज्ञों ने हवन कराया। इस प्रकार विवाह के सभी लौकिक तथा वैदिक कृत्य बड़ी ही उत्तमता के साथ समाप्त हुए। विष्णुप्रिया ने पतिदेव के चरणों में आत्मसमर्पण किया और निमाई ने उन्हें वामांग करके स्वीकार किया। सनातन मिश्र ने बहुत-सा धन तथा बहुमूल्य वस्त्राभूषण निमाई के लिये भेंट में दिये। इस सब कार्यों के हो जाने पर विवाह के सब कार्य समाप्त किये गये। दूसरे दिन सनातन मिश्र ने सभी विद्वान पण्डितों की सभा की। उनकी योग्यतानुसार यथोचित पूजा की और द्रव्यादि देकर खूब सत्कार किया। तीसरे दिन विष्णुप्रिया के साथ दोला (पालकी) में चढ़कर निमाई अपने घर आये। चिरकाल से जिसे अपनी पुत्र-वधू बनाने के लिये माता उत्सुक थी, आज उसे ही पुत्र के साथ अपने घर में आयी देखकर माता की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। वह उस युगल जोड़ी को देखकर मन-ही-मन अत्यन्त प्रसन्न हो रही थी। घर में घुसते समय चौखट में उँगली पिच जाने के कारण विष्णुप्रिया के कुछ खून निकल आया था। इसे अपशकुन समझकर उनका चित्त पहले तो कुछ दुःखी हुआ था, किन्तु थोड़े दिनों में वे इस बात को भूल गयी थीं। जब निमाई संन्यास लेकर चले गये, तब उन्हें यह घटना याद आयी थी और वह उसे स्मरण करके दुःखी हुई थीं। इस प्रकार विष्णुप्रिया को पाकर निमाई अत्यन्त ही प्रसन्न हुए और विष्णुप्रिया भी अपने सर्वगुणसम्पन्न पति को पाकर परम आह्लादित हुईं। |