श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी32. विष्णुप्रिया-परिणय
इधर निमाई पण्डित के पास इतना द्रव्य नहीं था कि वे राजपण्डित की पुत्री के साथ खूब समारोह के साथ विवाह कर सकें। इसके लिये वे कुछ चिन्तित-से हुए। धीरे-धीरे इस बात की खबर इनके सभी विद्यार्थी तथा स्नेहियों को लग गयी। विद्यार्थी बड़े प्रसन्न हुए और आ-आकर कहने लगे- ‘गुरुजी! ज्योंनार की मिठाइयाँ तो खूब खाने को मिलेंगी। सनातन तो राजपण्डित ठहरे। खूब जी खोलकर विवाह करेंगे। बढ़िया-बढ़िया मिठाइयाँ बनावेंगे। खूब आनन्द रहेगा।’ ये सबकी बातें सुनकर हँस देते। उस समय नवद्वीप में बुद्धिमन्त खाँ ही सबसे बड़े जमींदार थे। वे उस समय के एक प्रकार से नवद्वीप के राजा ही समझे जाते। निमाई पण्डित से वे बहुत स्नेह करते थे। इनके विवाह की बात सुनकर वे इनके पास पाठशाला में आये। जिनके चण्डी-मण्डप में ये पढ़ाते थे, वे मुकुन्द संजय भी वहीं बैठे थे। उन्होंने इनका आगत-स्वागत किया। बुद्धिमन्त खाँ ने कहा- ‘पण्डित जी! सुना है आप दूसरा विवाह कर रहे हैं? यह बात कहाँ तक सच है? सुना है अबके राजपण्डित की पुत्री पसंद की है।’ कुछ लजाते हुए इन्होंने कहा- ‘आप जो भी सुनेंगे सब सत्य ही होगा। भला, आपके सामने झूठ बात कहने की किसकी हिम्मत हो सकती है?’ इस उत्तर से प्रसन्न होकर बुद्धिमन्त खाँ ने कहा- ‘तब तो खूब मिठाई खाने को मिलेगी। हाँ, एक प्रार्थना मेरी है, इस विवाह का सम्पूर्ण खर्च मेरे जिम्मे रहा।’ बीच में ही मुकुन्द संजय बोल उठे- ‘वाह साहब! सब आपका ही रहा, हम वैसे ही रहे। कुछ हमें भी तो अवसर दीजिये। अकेले-ही-अकेले आनन्द उठा लेना ठीक नहीं।’ हँसते हुए बुद्धिमन्त खाँ ने जवाब दिया- ‘आप भी अपनी इच्छा पूर्ण कर लें। कुछ भिखमंगे ब्राह्मण का विवाह थोड़े ही है। राजपण्डित की पुत्री के साथ शादी है। राजकुमार की ही भाँति खूब ठाट-बाट से विवाह करेंगे। आप जितना भी चाहें खर्च कर लें।’ इस प्रकार विवाह के सम्पूर्ण खर्च का भार तो इन दोनों धनिकों ने अपने ऊपर ले लिया। अब निमाई इस बात से तो निश्चिन्त हो गये, फिर भी उन्हें बहुत-सा काम स्वयं ही करना था। उसे लिये वे विद्यार्थियों की सहायता से स्वयं ही सब काम करने लगे। |