श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी31. सर्वप्रिय निमाई
किसी स्त्री को देखकर कहते ‘मामी! तेरा दही तो खट्टा है, थोड़ी चीनी डाल देती तो स्वाद बन जाता।’ यह सुनकर कोई चीनी लेने दौड़ती। चीनी घर में न होती तो गुड़ ही ले आती। ये हँसते-हँसते गुड़ के साथ दही पीने लगते। विद्यार्थियों को भी दूध-दही पिलाते और फिर हँसते-हँसते पाठशाला की ओर चले आते। विशेषकर ये सीधे-सादे वैष्णवों को और सरल स्वभाव वाले दूकानदारों को खूब छेड़ते। दूकानदारों को भी इनके साथ छेड़खानी करने में आनन्द आता। एक पान वाले से इनका सदा झगड़ा ही बना रहता। ये उससे मुफ्त ही पान माँगा करते और वह मुफ्त देने से इनकार किया करता। तब ये अपने हाथ से ही उठा लेते। पान वाला हँस पड़ता, ये तब तक पान को चट कर जाते। पान वाले को ऐसा करने में नित्य नया ही आनन्द प्रतीत होता था, अतः यह झगड़ा प्रायः रोज ही हुआ करता। कभी तो दिन में दो-दो, तीन-तीन बार हो जाता। पान वाला बड़ा ही सरल और कोमल प्रकृति का पुरुष था। वह इन्हें पुत्र की तरह मन-ही-मन चाहता था। वहीं श्रीधर नाम के एक भक्त दूकानदार थे। वे अत्यन्त ही गरीब थे, किन्तु थे परम वैष्णव। उनके पास रहने वाले उनके कारण बहुत ही परेशान रहते। वे रातभर खूब जोरों के साथ भगवन्नाम का कीर्तन करते रहते। पड़ोसियों की रात में जब भी आँखें खुलतीं तभी इन्हें भगवन्नाम का कीर्तन करते ही पाते। कोई कहता- ‘भाई, इस बूढे़ के कारण तो हम बड़े परेशान हैं, रातभर चिल्लाता रहता है, सोने ही नहीं देता?’ कोई कहता- ‘भगवान जाने इसे नींद क्यों नहीं आती। दिनभर तो दूकानदारी करता है और रातभर चिल्लाता रहता है, यह सोता किस समय है?’ कोई-कोई इनके पास जाकर कहते- ‘बाबा! भगवान बहिरा थोड़े ही है, जरा धीरे-धीरे भजन किया करो।’ ये कहते- ‘बेटा! धीरे-धीरे कैसे करूँ, तुम सब लोग तो दिन-रात काम में ही जुटे रहते हो, कभी भगवान का घड़ी भर को भी नाम नहीं लेते। इसलिये जिह्वा से नहीं ले सकते तो कान से तो सुनोगे ही, इसीलिये मैं जोर-जोर से भगवन्नाम का उच्चारण करता हूँ जिससे तुम सबों के कानों में भगवन्नाम पड़ जाय।’ इस प्रकार ये किसी की भी बात नहीं सुनते और हमेशा भगवान के मधुर नामों का उच्चारण करते रहते। ये केले के पत्ते ओर केले के भीतर के कोमल-कोमल कोपलों को बेचा करते। बंगाल में कोमल कोपलों का साग बनाया जाता है। |