श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी24. चंचल पण्डित
वैष्णव कहते- ‘निमाई पण्डित ऐसे विद्वान वैष्णवों की हँसी उड़ाते हैं।’ अद्वैत कहते- ‘तुम अभी निमाई को जानते नहीं, वे हृदय से वैष्णवों के प्रति बड़ा स्नेह रखते हैं, वे जो भी कुछ कहते हैं ऊपर से ही यों ही कह देते हैं। आगे चलकर तुम उन्हें यथार्थ रीति से समझ सकोगे।’ इस प्रकार वैष्णव तो आपस में ऐसी बातें किया करते और निमाई अपनी लोकोत्तर मधुर-मधुर चंचलता से नगरवासी तथा शचीदेवी और लक्ष्मीदेवी को आनन्दित और हर्षित किया करते। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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