चिरई चुहचुहानी, चंद की ज्योति परानी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग विभास


चिरई चुहचुहानी, चंद की ज्योति परानी, रजनी बिहानी, प्राची पियरी प्रवान की।
तारिका दुरानी, तम घटयौ, तमचुर बोले, स्रवन भनक परी ललिता के तान की।।
भृंग मिले भारजा, बिछुरी जोरी काक मिले, उतरी पनच अब काम के कमान की।
अथवत आए गृह, बहुरि उबन भानु, उठौ प्राननाथ महा जानमनि जान की।।
ब्रज घर घर यहै करत चबाउ लोग, बार बार कहनि पगनि पग आन की।
'सूरदास' प्रभु नंदसुवन सिधारौ धाम, सुनत उठनि छवि कृपा के निधान की।।2039।।

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