चितै रघुनाथ-बदन की ओर -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

Prev.png
राग सारंग
धनुष-भंग


  
चितै रघुनाथ-बदन की ओर।
रघुपति सौं अबनेम हमारौ, बिधि सौं करति निहोर।
यह अति दुसह पिनाक पिता-प्रन , राधव-बयस किसोर।
इन पै दीरध धनुष चढ़े क्यौ, सखि, यह संसय मोर।
सिय- अंदेस जानि सूरज-प्रभु, लियौ करज की कोर।
टूटत धनु नृप लुके जहाँ तहँ , ज्यौं तारागन भोर।।23।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः