चितै रघुनाथ-बदन की ओर।
रघुपति सौं अबनेम हमारौ, बिधि सौं करति निहोर।
यह अति दुसह पिनाक पिता-प्रन , राधव-बयस किसोर।
इन पै दीरध धनुष चढ़े क्यौ, सखि, यह संसय मोर।
सिय- अंदेस जानि सूरज-प्रभु, लियौ करज की कोर।
टूटत धनु नृप लुके जहाँ तहँ , ज्यौं तारागन भोर।।23।।