चितवत ही मधुबन दिन जात -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


चितवत ही मधुबन दिन जात।
नैननि नींद परत नहिं सजनी, सुनि सुनि बातनि मन अकुलात।।
अब ये भवन देखियत सूने, धाइ धाइ हमकौ ब्रज खात।
कौन प्रतीति करै मोहन की, जिन छाड़े निज जननी तात।।
अनुदिन नैन तपत दरसन कौ, दरद समान देखियत गात।
'सूरदास' स्वामी कै बिछुरे, ऐसी भई हमारी घात।। 3251।।

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