चाहता मन है नित संयोग -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा के प्रेमोद्गार-श्रीकृष्ण के प्रति

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राग जंगला - ताल कहरवा


चाहता मन है नित संयोग।
इसी से लगता दुखद वियोग॥
नहीं पर तनिक स्व-सुख की चाह।
इसी से मुझे न कुछ परवाह॥
मिलन हो या हो नित्य विछोह।
किसी भी स्थिति में रहा न मोह॥
रही, बस, एक लालसा जाग।
बढ़े नित नव तुम में अनुराग॥
दुःख गुरु हो या सुख सुविशाल।
तुम्हारे सुखसे रहूँ निहाल॥
रहो तुम सदा परम सुखरूप।
मुझे सम है छाया औ धूप॥
नरक का डर न स्वर्ग की चाह।
न जाती कभी मुक्ति की राह॥
प्रेम-बन्धन नित रहे अटूट।
भले संकट से मिले न छूट॥
नहीं प्रतिकूल, न कुछ अनुकूल।
तुम्हारा सुख ही सब सुख मूल॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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