चालो अगम के देस -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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अगमर्दश
राग शुद्ध सारंग






चालो अगम के देस, काल देखत डरै,
वहाँ भरा प्रेम का हौज, हंस केल्याँ करै।
ओढण लज्जा चीर, धीरज को घाँघरों।
छिमता काँकण हाथ, सुमति को मून्दरो।
दिल[1] दुलड़ी दरियाव, साँच को देवड़ो।
उबटण[2] गुरु को ज्ञान, ध्यान को धोवणो।
कान अखोटा ज्ञान, जुगत को झूटणो।
बेसर हरि को नाम चूड़ो[3] चित्त ऊजलो।
जीहर सील सँतोष, निरत को घूँघरो।
बिंदली गज और हार, तिलक गुरु ज्ञान को।
सज सोलह सिणगार, पहरि सोने राखड़ी।
सांवलिया सूँ प्रीति, औराँ सूँ आखड़ी[4] ।।192।। [5]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इसके पहले ‘काँची है विस्वास चूडो चित ऊजलो’ भी पाठ मिलता है।
  2. इसके पहले ‘दाँतों अमृत मेख दया को बोलणौं’ भी पाठ है।
  3. ‘काजल है धरम को’।
  4. इसके अनंतर ‘पतिबरता की सेज प्रभूजी पधारिया। गावे मीराबाई दासी कर रखिया।।
  5. चालो = चलो। अगम = अगम्य, परमात्मा। काल = मृत्यु। हौज = कुंड। हंस = हंस नामक पक्षी, यहाँ पर आत्मा। केल्यां = केलियां, भिन्न भिन्न प्रकार की कीड़ायें। ओंढण = ओढ़ने के लिए। चीर = साड़ी। घांघरो = एक प्रकार का लहँगा। छिमता = क्षमता अथवा क्षमा। कांकण = कंगन। सुमत = अच्छी शुभ मति। मून्दरो = मुंदरी, अ‍ॅँगूठी। दिल दरियाव = उदाराशयता, उदार हृदय। दुलड़ी = दो लड़ों की माला। दोवड़ो = एक गहना। उबठण = उबटन। गुरु को ज्ञान = गुरु का उपदेश। धोवणों = स्नान। अखोटा = कान का गहना। जुगत = युक्ति, ईश्वर प्राप्ति के उपाय। झूटणो = कान का गहना। बेसर = नाक का एक गहना। चूड़ो = बाहों पर पहनने का हाथी दाँत का चूड़ा। चित्त उजलो = उज्ज्वल शुद्ध चित्त। जीहर = एक गहना। निरत = लीनता, अनुरक्ति। घूँघरों = घूँघरूदार गहना। बिंदली = टिकुली। गज = जगमुक्ता की माल। औराँसूँ = दूसरों से। आखडी = उदासीन। राखडी = चूड़ामणि।
    विशेष- अगम देश, अमरपुर वा परमात्मा की स्थिति की प्राप्ति अथवा प्रियतम परमात्मा के साथ तादात्म्य लाभ कमाने के लिये जिन बातों का होना आवश्यक है उन्हें मीरांबाई ने इस पद में षोड़श श्रृंगार के भिन्न भिन्न अंगों के रूपक द्वारा व्यक्त किया है। परंतु इस पद में आये हुए उल्लेख षोड़श श्रृंगार की साधारण परिभाषा के अनुसार ठीक नहीं उतरते। तुलना के लिण् देखिये - 1. अंग में उबटन लगाना, 2. नहाना, 3. स्वच्छ वस्त्र धारण करना, 4. बाल सँवारना, 5. काजल लगाना, 6. सेंदुर से माँग भरना, 7. महावर देना, 8. भाल पर तिलक लगाना, 9. चिबुक पर तिल बनाना, 10. मेंहदी लगाना, 11. सुगन्धित वस्तुओं का प्रयोग करना, 12. गहने पहनना, 13. फूलो की माला धारण करना, 14. पान खाना, 15. मिस्सी लगाना, 16. होठों का लाल करना। अंगशुची 1, मंजन 2, वसन 3, माँग 4, महावर 5, केश 6, तिलक भाल 7, तिल चिबुक 8, भूषण 9, मेंहदी 10, वेस। मिस्सी 11, काजल 12, अरगजा 13, बीरी 14, और सुगंध 15। पुष्प 16, कलीयुत होय कै तव नव सप्तनि
                              -हिंदी शब्द सागर, पृष्ठ 3346 से उदधृत

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