चातक न होइ कोउ विरहिनि नारी।
अजहूँ पिय पिय रजनि सुरति करि, झूठै ही मुख माँगत वारि।।
अति कृस गात देखि सखि याकौ, अहनिसि बानी रटत पुकारि।
देखौ प्रीति बापुरे पसु की, आन जनम मानत नहिं हार।।
अब पति बिनु ऐसौ लागत है, ज्यौ सरवर सोभित बिनु बारि।
त्यौ ही ‘सूर’ जानिये गोपी, जौ न कृपा करि मिलहु मुरारि।। 3335।।