चलौ किन मानिनि कुंज कुटीर।
तुव बिनु कुँवर कोटि बनिता तजि, सहत मदन की पीर।।
गदगद स्वर सभ्रम अति आतुर, स्रवत सुलोचन नीर।
क्वासि क्वासि वृषभानुनंदिनी, बिलपत बिपिन अधीर।।
बसी बिसिष, माल व्यालावलि, पंचानन पिक कीर।
मलयज गरल, हुतासन मारुत, साखामृगरिपु चीर।।
हिय मैं हरषि प्रेम अति आतुर, चतुर चली पिय तीर।
सुनि भयभीत बज्र के पिंजर, 'सूर' सुरतिरनधीर।।2452।।