चले बछरू चरावन ग्वाल।
वृंदावन सब छाँड़ि कै ले गए जहँ घन ताल।।
परम सुदर भूमि देखत हरष मनहि बढ़ाइ।
आपु लागे तहाँ खेलन बच्छ दिए बगराइ।।
जानिकै हरधर गए तहँ बाल-बछरा-पास।
रोहिनी नदनहिं देखत हरष भयहु हुलास।।
तालरस बलराम चाख्यौ मन भयौ आनंद।
गोपसुत सब टेरि लीन्हे सुधि भई नँदनंद।।
कह्यौ बछरा हाँकि ल्यावहु चलौ जहाँ कन्हाइ।
तालरस के पान तै अति मत्त भए बल राइ।।
तहाँ छल करि दनुज आयौ धरे बछरा भेष।
फिरत ढूँढत स्याम कौ अति प्रबल बल कौ देख।।
सबै बछरनि घेरि ल्याए वह न घेरयौ जाइ।
दाउ कहि बालकनि टेरयौ वृषभसुत न धराइ।।
कह्यौ मन इहि अबहिं मारौ उठे बलहिं सम्हारि।
टेरि लए सब ग्वालबालक गए आपु प्रचारि।।
आगै ह्वै इत कौ बिडारयौ पूछ हाथ लगाइ।
पकरि कै भुज सौ फिरायौ ताल कै तर आइ।।
असुर लै तरु सौ पछारयौ गिरयौ तरु भहराइ।
ताल सौ तरु ताल लाग्यौ उठ्यौ बन घहराइ।।
बछासुर कौ मारि हरधर चले सबनि लिवाइ।
‘सूर’ प्रभु के बीर जाकी तिहूँ भुवन बड़ाइ।। 26 ।।