चली ब्रज घर-घरनि यह बात -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्‍हरौ



चली ब्रज घर-घरनि यह बात।
नंद-सुत सँग सखा लीन्‍हे, चोरि माखन खात।
कोउ कहति, मेरे भवन भीतर, अबहिं बैठे धाइ।
कोउ कहति, मोहिं देखि द्वारैं, उ‍तहिं गए पराइ।
कोउ कहति, किहिं भाँति हरि कौं, देखौं अपनैं धाम।
हेरि माखन देउँ आछौ, खाइ जितनौ स्‍याम।
कोउ कहति, मैं देखि पाऊँ, भरि धरौं अँकवारि।
कोउ कहति, मैं वाँधि राखौं, को सकै निरवारि।
सूर प्रभु के मिलन कारन, करतिं बुद्धि बिचार।
जोरि कर विधि कौं मनावति, पुरुष नंद-कुमार।।273।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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