चलन चहत पाइनि गोपाल -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सूहौ बिलावल



चलन चहत पाइनि गोपाल।
लए लाइ अँगुरी नँदरानी, सुंदर स्याम तमाल।
डगमगात गिरी परत पानि पर, भुज भ्राजत नँदलाल।
जनु सिर पर ससि जानि अधोमुख, धुकत नलिनि नमि नाल।
धूरि-धौत तन, अंजन नैननि, चलत लटपटी चाल।
चरन रनित नूपुर-धुनि, मानौ बिहरत बाल मराल।
लट लटकनि सिर चारु चखौडा़, सुठि सोभा सिसु भाल।
सूरदास ऐसो सुख निरखत, जग जीजै बहु काल।।114।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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