चलन चहत पाइनि गोपाल।
लए लाइ अँगुरी नँदरानी, सुंदर स्याम तमाल।
डगमगात गिरी परत पानि पर, भुज भ्राजत नँदलाल।
जनु सिर पर ससि जानि अधोमुख, धुकत नलिनि नमि नाल।
धूरि-धौत तन, अंजन नैननि, चलत लटपटी चाल।
चरन रनित नूपुर-धुनि, मानौ बिहरत बाल मराल।
लट लटकनि सिर चारु चखौडा़, सुठि सोभा सिसु भाल।
सूरदास ऐसो सुख निरखत, जग जीजै बहु काल।।114।।