चलत स्यामघन राजत, बाजति पैजनि पग-पग चारु मनोहर।
डगमगात डोलत आँगन मैं, निरखि बिनोद मगन सुर-मुनि-नर।
उदित मुदित अति जननि जसोदा, पाछैं फिरति गहे अँगुरी कर।
मनौ धेनु तृन छाँड़ि बच्छ–हित, प्रेम द्रवित चित स्रवत पयोधर।
कुंडल लोल कपोल बिराजत, लटकति लटुरिया भ्रू पर।
सूर स्याम-सुंदर अवलोकत बिहरत बाल-गोपाल नंद-घर।।124।।