चतुर वर नागरी बुद्धि ठानी।
अबहिं मोहिं बूझिहै इनहिं कहिहौ कहा, स्याम सँग आजु मोहिं प्रगट जानी।।
भाव करि गए, हरि ग्वाल बूझत रहे, जिनि जिय लई गति चतुर रासी।
यह रचौ बुद्धि इक, कहा ये कहैं मोहिं, मेरे मन सबै ये घोषवासी।।
इतहुँ की उतहुँ की सबै, जुरि एकठी, कहति राधा कहाँ जाति है री।
'सूर' प्रभु कौ अबहिं देखे हम तेरै ढिग, कहा गए जिनहिं पछिताति है री।।1951।।