चतुर चतुर की भेंट भई।
वह तौ निठुर मौन ह्वै बैठी, इनि सबहिनि लखि ताहि लई।।
मुँहाचुही जुबतिनि तब कीन्ही, देखौ उलटी रीति ठई।
कहा हमारौ मन यह राखै, हमहीं पर सतराइ गई।।
बूझौ याहि खूँट गहिकै, तू कहा आजु यह मौन लई।
सुनहु सूर हमसौं कह परदा, हम करि दीन्ही साँट सई।।1728।।