घूँघट के बगरोट ओट रहि -सूरदास

सूरसागर

2.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

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राग कान्हरा




घूँघट के बगरोट ओट रहि चोट सरासन भौंह सायक दृग।
बेच्यौ विदित चपल पलकनि अलकनि फस निसंग चलौ ढिग।।
ते करि सायल नायक की मनि सुनि सुंदरी सरि को जग।
बवन प्रसंसि अंस भुज धरि हरि धरि करि करुना तुव भूपन को नग।।
चित चितयो फिरि दिसा अनौपी पोषि अधर मधु सुधि भई जो लग।
'सूरदास' संयोगहि यह गति रति बिछुरे की अकध कथा खग।। 56 ।।

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