घर ही की इक ग्‍वारि बुलाई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


                                
घर ही की इक ग्‍वारि बुलाई।
छाक समग्री सबै जोरि कै, वाकैं कर दै तुरत पठाई।
कह्यौ ताहि बृंदाबन जैऐ, तू जानति सब प्रकृति कन्‍हाई।
प्रेम सहित लै च‍ली छाक वह, कहँ ह्वै हैं भूखे दोउ भाई।
तुरत जाइ बृंदाबन पहुँची, ग्‍वाल-बाल कहुँ कोउ न बताई।
सूर स्‍याम कौं टेरत डोलति, कित हौ लाल छाक मैं लाई।।457।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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