घर घर इहै सब्द परयौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


  
घर घर इहै सब्द परयौ।
सुनत जसुमति धाइ निकसी, हरष हियौ भरयौ।।
नद हरषित चले आगै, सखा हरषित अंग।
झुंड झुडनि नारि हरषित, चली उदधि तरंग।।
गाइ हरषित ते स्रवति थन, चौकरत गौ बाल।
उमँगि अंग न मात कोऊ, विरध तरुनऽरु बाल।।
कोउ कहत बलराम नाही, स्याम रथ पर एक।
कोउ कहत प्रभु ‘सूर’ दोऊ, रचित बात अनेक।।3462।।

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