धर गुरुजन की सुधि जब आई।
तब मारग सूझयौ नैनति कछु, जिय अपनैं तिय गई लजाई।।
पहुँची आइ सदन ज्यौं-त्यौं करि नैकु न चित तैं टरत कन्हाई।
सखी संग की बूझन लागीं जमुनात-तट अति गहर लगाई।।
औरै दसा भई कछु तेरी, कहति नहीं हमसौं समुझाई।।
कहा कहौं कछु कहत न आवै, सूर स्याम मोहिनी लगाईं।।1451।।