घर-घर तैं निकसीं ब्रज-बाला।
लीन्हैं नाम जुवति जन जन के मुरली मैं सुनि-सुनि ततकाला।।
इक मारग, इक घर तैं निकरीं, इक निकरतिं इक भई बिहाला।।
एक नाहिं भवननि तैं निकरीं, तिनपैं आए परम कृपाला।।
यह महिमा वेई पै जानैं कबि सौं कहा बरनि यह जाई।।
सूर स्याम- रस-रास-रीति-सुख, विनु देखैं आवै क्यौं गाई।।1005।।