ग्‍वालि उरहनौ भोरहिं ल्‍याई 2 -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग बिलावल
यमलार्जुन उद्धार की दूसरी अवस्था



नव लख धेनु दुहत घर मेरै। कैसे ग्वाल रहत गउ घेरे।
मथति नँद-धर सहरा मथानी। ताकै सुत चोरी को खाली।
मौसौं कहति आनि जब नारी। बोलि जात नहि लाजनि आनि।
नंद महर की करत नन्हाबई। बिरथ बथस सुत भयौ कन्हारई।
तुम्हरे गुन सब नीके जानै। नित बरसौ, कबहूँ नहि बांचे।
कोउ छोरै जनि ढीठ कन्हाई। बाँधे दोउ भुज ऊखल लाई।
भवन-काज कौं गई नँदराई। आँगन छाँड़े स्याम बिनानी।
उरहन देत ग्वाालि जे आई। तिन्हैं दियौ जसुदा बहुराई।
चलीं सबै मिलि सोचत मन मैं। स्यामहिं गहि बाँध्यौ इक छिन मैं।
हँसत बात इक कही कि नाहीं। ऊखल सौं बाँध्यौ सुत बाहीं।
कहा कहौं वा छबि कौ माई। बाँबी पर अहि करत लराई।
कान्ह बदन अतिहीं कुम्हिलायौ। मानौ कमलहिं हिम तरसायौ।
डर तैं दीरघ नैन चपल अति। बदन-सुधा-रस मोन करत गति।
यह सुनि और जुवति सबत आइँ। जसुमति बाँधे कतहिं कन्हाई।
भली बुद्धि तेरैं जिय उपजी। ज्यौं-ज्यौं दिनी भई त्यौं निपजी।
छोरहुु स्याम करहु मन लाहौ। अति निरदई भई तुम का हौ।
देखै स्याम-ओर नँदरानी। सकुचि रह्यौ मुख सारँगपानी।
बाहिर बाँधि सुतहिं बैठारौ। मथति दही माखन तोहि प्यारौ।
छाँडि़ देहु बहि जाइ मथानी। सौंह दिवावति छोरहु आनी।
हाँसी करन सबै तुम आई। अब छोरौ नहिं कुँवर कन्हाई।
तुमहीं मिलि रसबाद बढ़ायौ। उरहन दै-दै मूँड़ पिरायो।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः