गोपी प्रेम -हनुमान प्रसाद पोद्दार
इस दृश्य को देखकर देवर्षि गद्गद हो गये और यशोदा को पुकारकर कहने लगे- कि ब्रूमस्त्वां यशोदे कति कति सुकृतक्षेत्रवृन्दानि पूर्वं ‘यशोदे! तेरा सौभाग्य महान् है। क्या कहें, न जाने तूने पिछले जन्मों में तीर्थो में जा-जाकर कितने महान् पुण्य किये हैं। अरी! जिस विश्वपति, विश्वस्त्रष्टा, विश्वरूप, विश्वधार, भगवान् की कृपा को इन्द्र, ब्रह्मा और शिव भी नहीं प्राप्त कर सकते, वही पूर्णब्रह्म आज तेरी गोद चढ़ने के लिये जमीन पर पड़ा लोट रहा है।‘ जो विश्वनायक भगवान् माया के दृढ़ सूत्र में बाँध-बाँधकर अखिल विश्व को निरन्तर नाच नचाते हैं, वही विज्ञानानन्दघन भगवान् गोपियों की प्रेम-माया से मोहित होकर सदा उनके आँगन में नाचते हैं। उनके भाग्य की सराहना और उनके प्रेम का महत्त्व कौंन बतला सकता है; रसखानि कहते हैं- सेस महेस गनेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरंतर ध्यावैं। गोपियों के भाग्य की सराहना करते हुए परम विरागी, सदा ब्रह्मस्वरूप मुनि शुकदेव जी कहते हैं- |
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