गोपी प्रेम -हनुमान प्रसाद पोद्दार
रे चेतः कथयामि ते हितमिदं वृन्दावने चारयन् ‘रे चित! तेरे हित के लिये तुझे सावधान किये देता हूँ। कहीं तू उस वृन्दावन में गाय चराने वाले, नवीन नील मेघ के समान कान्तिवाले छैल को अपना बन्धु न बना लेना, वह सौन्दर्यरूप अमृत बरसाने वाली अपनी मन्द मुसकान से तुझे मोहित करके तेरे प्रिय समस्त विषयों को तुरंत नष्ट कर देगा।‘ अद्वैत सिद्धिकार मधुसूदन स्वामीजी को भी उसकी रूपछटा के फंदे में पड़कर स्वाराज्य-सिंहासन से च्युत होना पड़ा था। वे कहते हैं- अद्वैतवीथीपथिकैरुपास्याः ‘अद्वैतमार्ग के अनुयायियों द्वारा पूज्य तथा स्वराज्यरूपी सिंहासन पर प्रतिष्ठित होने का अधिकार प्राप्त किये हुए हमको गोपियों के पीछे-पीछे फिरने वाले किसी धूर्त ने हठपूर्वक (जबरदस्ती, इच्छा न रहने पर भी) अपने चरणों का गुलाम बना लिया।‘ भक्त लीलाशुकजी उस बालकृष्ण की छावि के जादू से डरकर सबको सावधान करते हुए कहते हैं- |
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