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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
नवम: सर्ग:
मुग्ध-मुकुन्द:
अष्टदश: सन्दर्भ:
18. गीतम्
श्रीजयदेव-भणितमति-ललितम्। अनुवाद- श्रीजयदेव कवि द्वारा विरचित अति सुललित श्रीकृष्ण-चरित-कथा रसिकजनों का सुख-वद्धर्न करे। पद्यानुवाद बालबोधिनी- गीतगोविन्द काव्य के इस अठारहवें प्रबन्ध का नाम अमन्दमुकुन्द है। श्रीहरि की प्रसन्नता एवं रसिक भगवद्भक्तों की प्रसन्नता ही इस गान का एकमात्र उद्देश्य और फल है। कवि जयदेव कह रहे हैं मैंने जो यह श्रीकृष्ण का चरित वर्णन किया है, वह अति ललित है, यह रसिकों के हृदय में आनन्द का विधान करे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- हरि चरितं (हरे: चरितं यत्र तत्) [अत:] अतिललितं (अतिमनोहरं) श्रीजयदेव-भणितं (श्रीजयदेवोक्ति:) रसिकजनं (श्रीकृष्णलीलारहस्यरसज्ञं भक्तजनं) सुखयतु (सुखी-करोतु) ॥8॥
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