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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
नवम: सर्ग:
मुग्ध-मुकुन्द:
अष्टदश: सन्दर्भ:
18. गीतम्
किमिति विषीदसि रोदिषि विकला? अनुवाद- तुम इतनी शोकविह्नल होकर क्यों रो रही हो? तुम्हारे विकलता-प्रदर्शक इन हाव भावों को देखकर तुम्हारी प्रतिपक्षी युवतियाँ प्रमुदित हो रही हैं। पद्यानुवाद बालबोधिनी- सखी की बातों को सुनकर श्रीराधा सिसक-सिसक कर रोती हैं, बिलखती हैं। तब सखी कहती है हे राधे! इस समय तुम विषाद क्यों कर रही हो, क्यों बिलख रही हो? तुम्हारी प्रतिपक्षी युवतियाँ तुम्हारे इन हाव-भावों को देखकर तुम्हारा उपहास कर रही हैं। कितनी नादान हो तुम, साक्षात् श्रीहरि तुम्हारे चरणों में लुण्ठन कर रहे हैं और तुम रोती ही जा रही हो।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- [एतदाकर्ण्य साश्रुनेत्रां प्रत्याह]- विकला (व्याकुला) [सती] किमिति (किमर्थं) विषीदसि (विषण्णा भवसि) रोदिषि च [माविषीद मारोद इत्यर्थ:]; [तव एवं व्याकुलतामवलोक्य] सकला (समग्रा) युवति सभा (प्रतिपक्ष-युवति-समूह:) विहसति (विशेषेण हसति) ॥4॥
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