विषय सूची
श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
नवम: सर्ग:
मुग्ध-मुकुन्द:
अष्टदश: सन्दर्भ:
18. गीतम्
ताल-फलादपि गुरुमतिसरसम् अनुवाद- सुपक्व ताल-फल से भी गुरुतर (भारी) एवं अति रसपूर्ण इन कुच-कलशों को विफल क्यों कर रही हो? पद्यानुवाद बालबोधिनी- सखी कहती हैं कि हे राधे! तुम्हारे कुच-कलश ताल फल से भी श्रेष्ठ हैं। रस-शास्त्रों में ताल-फल को अति गुरु एवं रसमय फल बताया गया है। अत: जिन कुच-कलशों की रसता एवं गुरुता के सम्मुख ताल फल का गुरुत्व एवं रसत्त्व भी निकृष्ट हो जाता है, उनकी सार्थकता तो हरि में है, हरि के स्पर्श में है, इन कलशों का गुरुत्व उन्हीं के लिए है और तुम उनका उद्देश्य ही नष्ट कर रही हो। स्तनों की विस्तृति अभिव्यक्त करने के लिए ही उनकी तुलना कलशों से की गयी है। मान छोड़ दो एवं श्रीहरि को इस रस-विलास का अनुभव करने दो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- [सुखमस्तु तेन मम किम्? इति चेत् स्तनाभ्यां किमपराद्धमिति सोत्प्रासमाह]- तालफलात् अपि गुरुं (स्थौल्येन काठिन्येन वर्त्तुलत्वेन च तालफलादपि श्रेष्ठं) अतिसरसं (रसभरपूर्णं) कुचकलसं (स्तनकुम्भं) किमु (किमर्थं) विफलीकुरुषे (व्यर्थयसि) [तदनुभवं बिना अस्य विफलीकरणं न युक्तमित्यर्थ:] ॥2॥
संबंधित लेख
सर्ग | नाम | पृष्ठ संख्या |