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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
अष्टम: सर्ग:
विलक्ष्यलक्ष्मीपति:
सप्तदश: सन्दर्भ:
17. गीतम्
पद्यानुवाद बालबोधिनी- श्रीराधा व्यंग्यपूर्वक श्रीकृष्ण से कहती हैं अहो, आपका हृदय अति उदार है- कैसा मनोहर स्वरूप धारण किया है! आपने तो अति प्रेमोल्लास से औदार्य को अभिव्यक्त करते हुए उस कामिनी के चरणकमलों को ही हृदय में धारण कर लिया है। उसके चरणों से वित आलता-रस का लाल रंग आपके वक्ष:स्थल को रञ्जित कर रहा है। श्याम-वर्ण पर जावक-रस का लाल-वर्ण तुम्हारी शोभा को और भी अभिवृद्धि कर रहा है। ऐसा लगता है, तुम्हारा हृदयस्थित अनुराग ही कामतरु के नव-नव किसलयों की भाँति लाल वर्ण के रूप में बाहर प्रकाशित हो रहा है। तुम्हारे हृदय में विद्यमान कामवृक्ष के नवीन पल्लव बाहर निकल रहे हैं। यह तुम्हारे अन्त:करण का निषिद्ध प्रेमव्यापार मदन-वृक्ष के रूप में तुम्हारी हृदयस्थली पर उग आया है। इन चरण-चिह्नों के रूप में इस वृक्ष के नये-नये लाल-लाल पल्लव दिखायी दे रहे हैं। तुम उस अनुराग को छिपा नहीं पा रहे हो। तुम्हारे लिए यहाँ कुछ नहीं है, जाओ! कुछ टीकाकारों के मतानुसार इस कथन के द्वारा श्रीराधा का अभिप्राय यह है कि श्रीकृष्ण द्वारा उस नायिका के साथ क्रोध नामक बन्धविशेष से रमण किया गया है। श्रीकृष्ण ने अपनी निर्मलता प्रस्तुत करते हुए कहा यह तो गैरिकादि धातुओं का चित्र चिह्नों है, मैंने किसी भी अंगना के चरणकमलों को धारण नहीं किया, न ही किसी के महावर को हृदय में लगाया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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