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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
अष्टम: सर्ग:
विलक्ष्यलक्ष्मीपति:
सप्तदश: सन्दर्भ:
17. गीतम्
पद्यानुवाद बालबोधिनी- श्रीकृष्ण की आँखें रातभर जागने के कारण और विरहानुभूति से लाल हो गयी हैं और अलसता हेतु बार-बार मुँदी जा रही हैं, ऐसी अनुरञ्जित आँखों को देखकर श्रीराधा श्रीकृष्ण को भावों की सार्थकता हेतु कई नामों से सम्बोधित करती हैं सपत्नी विषयक ईर्ष्या प्रकट करती हैं। हरि! हरि! ये दोनों अव्यय पद 'खेद' प्रकट करने के लिए प्रयुक्त हुए हैं। गान छन्द को पूर्ण करने के लिए भी स्तोभ रूप में इनका प्रयोग हो सकता है। खण्डिता श्रीराधा अपने सम्मुख प्रणतवान अपने प्रिय से कहती हैं हे माधव! हे लक्ष्मीपति! जाओ! चले जाओ! आप अन्यासक्त हैं, किस प्रकार दूसरों की प्रताड़ना करोगे यह 'मा' शब्द से द्योतित होता है। अथवा मा अर्थात लक्ष्मी स्वभाव से चञ्चला हैं, उनके पति का भी चञ्चल होना युक्तिसंगत ही है। मैं एक पतिपरायणा हूँ, आप मुझसे किस प्रकार स्नेह कर सकते हैं? अत: चले जाओ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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