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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
प्राचीन अलंकार शास्त्रियों ने माधुर्य नामक गुण को दो प्रकार का बतलाया है- शब्दाश्रित और अर्थाश्रित। वाक्यगत पृथक्पदत्व को शब्दाश्रित माधुर्य कहते हैं तथा उक्ति की विचित्रता को अर्थगत माधुर्य कहते हैं। ये दोनों प्रकार के माधुर्य इस काव्य में दृष्टिगोचर होते हैं। शब्द और अर्थगत कोमलता भी इस काव्य में पायी जाती है। इन पद्यों में अभिधेय, प्रयोजन तथा अधिकारी का निरूपण हुआ है। श्रीराधामाधव की रह:केलि अभिधेय है, प्रतिपाद्य श्रीराधामाधव हैं और प्रतिपादक ग्रन्थ है। यह स्मार्य-स्मारक सम्बन्ध है। श्रीराधामाधव की केलि-लीला का श्रवण कीर्त्तन करते हुए अनुमोदनजनित आनन्द का अनुभव और इसमें विभावित अन्त:करण वाले वैष्णव ही इसके अधिकारी हैं। इस पद्य में दीपकालांर, पाञ्चाली रीति, कैशिकी वृत्ति तथा द्रुतविलम्बित छन्द है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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