गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 25

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

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वाग्रदेवताचरितचित्रितचित्तसद्मा
पद्मावतीचरणचारणचक्रवर्त्ती।
श्रीवासुदेवरतिकेलिकथासमेतमेतं
करोति जयदेवकवि: प्रबन्धम्॥2॥[1]

अनुवाद - जिनके चित्त-सदन में समस्त वाणियों के नियन्ता श्रीकृष्ण की चरितावली सुचारु रूप से चित्रित हो रही है, जो श्रीराधाजी के चरणयुगल प्राप्ति की लालसा में निरन्तर नृत्य विधि के अनुसार निमग्न हो रहे हैं, ऐसे महाकवि जयदेव गोस्वामी श्रीकृष्ण की कुञ्ज-विहारादि सुरत लीला समन्वित इस गीतगोविन्द नाम के ग्रन्थ का प्रणयन कर भाव ग्राही भक्तजनों के उज्ज्वल भक्तिरस को उच्छलित कर रहे हैं॥2॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अन्वय- वाग्‌देवताचरितचित्रितचित्तसद्मा (वाग्देवताया: सरस्वत्या: चरितेन चित्रितं सुशोभितं चित्तमेव सद्म भवनं यस्य तादृश:; सर्वविद्याविशारद इत्यर्थ:; यद्वा वाचां वक्तव्यत्वेन उपस्थितानां तत्केलिमयीनां देवता वक्ता प्रवर्त्तकश्च श्रीकृष्ण: तच्चरितेन चित्ररूपेण लिखितं चित्तरूपं सद्म गृहं यस्य स:) [तथा] पद्मावतीचरणचारणचक्रवर्त्ती (पद्मावत्या: लक्ष्म्या: चरणयो: निमित्त भूतयोरेव चारणचक्रवर्त्ती नर्त्तकश्रेष्ठ:) श्रियोऽपि प्रियसेवक इत्यर्थ:); जयदेवकवि: श्रीवासुदेवरतिकेलिकथासमेतं (श्रीवासुदेवस्य वासुर्नारायण: सचासौ देवश्चेति विग्रह:; श्रीवसुदेवसुतस्य वा रतिकेलि: सुरतोत्सव: तस्य कथा कीर्त्तनं तत्समेतं) एतं प्रबन्धं (ग्रन्थं) करोति ॥2॥

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सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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