विषय सूची
श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
चतुर्थ: सर्ग:
स्निग्ध-मधुसूदन:
अथ नवम: सन्दर्भ
9. गीतम्
सरस-मसृणमपि मलयज-पंकम् अनुवाद- केशव! विरहवियुक्ता वह श्रीराधा अपने शरीर में संलग्न सरस, कोमल एवं सुचिक्कण चन्दन-पंक को सशंकित होकर विष की भाँति देख रही हैं।
बालबोधिनी- मलय चन्दन का लेप अत्यन्त चिकना और अतिशय सरस होता है, परन्तु वह समझती हैं कि विष से उसका लेपन किया गया है। श्रीकृष्ण की विरहव्यथा की व्याकुलता से सम्प्रति चन्दन-विलेपन श्रीराधा को सुखदायी न होकर दु:खकारी हो रहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- [न केवलं हार-वहनासमर्था अपि तु] सरसं (आर्द्रं) मसृणम् (सुघृष्टम्) अपि मलयज-पंक (चन्दन-विलेपनं) वपुषि (शरीरे) विषमिव (गरलं यथा) सशंक [यथा स्यात् तथा] पश्यति ॥2॥
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