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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
द्वितीय सर्ग
अक्लेश-केशव:
अथ षष्ठ सन्दर्भ
6. गीतम्
बालबोधिनी- विरह में तीन प्रकार का अनुभव होता है स्मरण, स्फूर्त्ति और आविर्भाव। श्रीराधा का कृष्ण-विरह में पहले स्मरण हुआ, सुदीप्त महाभाव में उनके हृदय में लीलाएँ स्वत:स्फूर्त्त हुई और अब उन्हें साक्षात्र अनुभव हो रहा है। वे सखी से कहती हैं देख सखि! मैं इस व्रजकानन में ब्रजसुन्दरियों के साथ विराजमान श्रीगोविन्द को देखकर हँस रही हूँ और आनन्दित हो रही हूँ। सखि ने प्रश्न किया अरी मुग्धे! जब श्रीकृष्ण तुम्हें छोड़कर दूसरी गोपललनाओं के साथ विहार कर रहे हैं, तब तुम्हें आनन्द क्यों हो रहा है? श्रीराधा कहती हैं जब ऐसी स्थिति में वे मुझे देखेंगे तो बहुत अधिक लज्जित हो जायेंगे, लज्जा के मारे वे पसीने-पसीने हो जायेंगे, उनके कपोल भी पसीने से भीग जायेंगे। मेरे सात्त्विक भावों को देखकर उनके अंगो में भी सात्त्विक भाव उदित हो जायेंगे। लज्जा के कारण उनके हाथों से वंशी स्खलित हो पड़ेगी। उस समय वे अपने भ्रु-भंगियों से इशारे से उन मनोहर भ्रुलताओं से युक्त व्रजवल्लभियों को अपने पास से हटा देंगे। उस समय उनका मुख-मण्डल मन्द-मुस्कान से अतीव मनोहर होगा। इस प्रकार प्रियतम को देखकर परमानन्दित होऊँगी। सखि! ऐसे प्रियतम श्रीकृष्ण से कब मिलूँगी? इस श्लोक में शार्दूलविक्रीड़ित छन्द तथा दीपकालंकार, विप्रलम्भ-श्रृंगार-रस, पंञ्चाली रीति, लारानुप्रासालंकार तथा दक्षिण नायक है ॥1॥ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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