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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ चतुर्थ सन्दर्भ
4. गीतम्
प्रस्तुत श्लोक में श्रीकृष्ण का शठत्व, धृष्टत्व, दक्षिणत्व, अनुकूलत्व तथा धूर्त्तत्त्व दिखायी देता है। सभी नायिकाएँ अभिसारिका नायिकाएँ हैं। श्रृंगारतिलक ग्रन्थ में धृष्ट नायक के लक्षण इस प्रकार बताये हैं अभिव्यक्तान्य तरुणी भोगलक्ष्मापि निर्भय: । अर्थात अन्य तरुणी के साथ सम्भोग के चिह्नों के स्पष्ट रहने पर भी बिना भय के निपुणता के साथ जो झूठ बोलता है, उसे धृष्ट नायक कहते हैं। प्रियं व्यक्ति पुरोऽन्यत्र विप्रियं कुरुते भृशम्। अर्थात विद्वानों ने उस नायक को शठ नायक कहा है, जो अपने अपराध को छिपाये रहता है। किसी दूसरी नायिका के प्रति आसक्त रहता है और अपनी नायिका के समक्ष मीठी-मीठी बातें करता है ॥7॥ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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