गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 114

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ चतुर्थ सन्दर्भ
4. गीतम्

Prev.png

केलि-कला-कुतुकेन च काचिदमुं यमुनावनकुले।
मञ्जुल-वञ्जुल-कुञ्जगतं विचकर्ष करेण दुकूले
[हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे... ॥5॥][1]

अनुवाद- सखि! देखो, यमुना पुलिन पर मनोहर वेतसी (वञ्जुल या वेंत) कुञ्ज में किसी गोपी ने एकान्त पाकर कामरस वशवर्त्तिनी हो क्रीड़ाकला कौतूहल से उनके वस्त्रयुगल को अपने हाथों से पकड़कर खींच लिया।

पद्यानुवाद
केलि कलाकुल कोई गोपी, यमुना जलके तीरे।
ले जाने हरि, वसन खींचती, वञ्जुल वनमें धीरे॥

बालबोधिनी- सखी किसी अधीरा नायिका का वर्णन करते हुए श्रीराधा से कहती है, श्रीकृष्ण जब मनोहर वेतसी लताकुञ्ज में गये हुए थे, तब वह अधीरा नायिका श्रीकृष्ण का वस्त्र पकड़कर उन्हें यमुना किनारे ले गयी; क्योंकि वह रहकेलि कलाकौतूहल से आविष्ट हो गई थी। 'च' कार से तात्पर्य है कि उसने विजन स्थान देखकर श्रीकृष्ण के साथ अनेक प्रकार से परिहास किया।

यमुनातीरे न कहकर यमुना जल तीरे कहने का अभिप्राय है कि जल के समान ही तट पर शैत्य (शीतलता) तथा पावनता भी है।

अन्य नायिका में अनुरक्त श्रीकृष्ण का वस्त्र खींचकर ले जाना अधीरता का अभिव्यञ्जक है ॥5॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अन्वय- सखि, काचित् (गोपललना) यमुनाकूले (यमुनातीरे) मञ्जुल-वञ्जुल-कुञ्जगतं (मञ्जुल: मनोहर: य: वञ्जुलकुञ्ज: लतादिपिहितो वेतसकुञ्ज: तत्र गतं) अमुं (हरिं) केलिकला-कुतुकेन (केलिकलायां सुरतनैपुण्ये यत् कुतुकम् औत्सुक्यं तेन हेतुना) करेण (हस्तेन) दुकूले (पीताम्बरे) विचकर्ष (आकृष्टवती) ॥5॥

संबंधित लेख

गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः