विषय सूची
श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ चतुर्थ सन्दर्भ
4. गीतम्
केलि-कला-कुतुकेन च काचिदमुं यमुनावनकुले। अनुवाद- सखि! देखो, यमुना पुलिन पर मनोहर वेतसी (वञ्जुल या वेंत) कुञ्ज में किसी गोपी ने एकान्त पाकर कामरस वशवर्त्तिनी हो क्रीड़ाकला कौतूहल से उनके वस्त्रयुगल को अपने हाथों से पकड़कर खींच लिया। पद्यानुवाद बालबोधिनी- सखी किसी अधीरा नायिका का वर्णन करते हुए श्रीराधा से कहती है, श्रीकृष्ण जब मनोहर वेतसी लताकुञ्ज में गये हुए थे, तब वह अधीरा नायिका श्रीकृष्ण का वस्त्र पकड़कर उन्हें यमुना किनारे ले गयी; क्योंकि वह रहकेलि कलाकौतूहल से आविष्ट हो गई थी। 'च' कार से तात्पर्य है कि उसने विजन स्थान देखकर श्रीकृष्ण के साथ अनेक प्रकार से परिहास किया। यमुनातीरे न कहकर यमुना जल तीरे कहने का अभिप्राय है कि जल के समान ही तट पर शैत्य (शीतलता) तथा पावनता भी है। अन्य नायिका में अनुरक्त श्रीकृष्ण का वस्त्र खींचकर ले जाना अधीरता का अभिव्यञ्जक है ॥5॥ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- सखि, काचित् (गोपललना) यमुनाकूले (यमुनातीरे) मञ्जुल-वञ्जुल-कुञ्जगतं (मञ्जुल: मनोहर: य: वञ्जुलकुञ्ज: लतादिपिहितो वेतसकुञ्ज: तत्र गतं) अमुं (हरिं) केलिकला-कुतुकेन (केलिकलायां सुरतनैपुण्ये यत् कुतुकम् औत्सुक्यं तेन हेतुना) करेण (हस्तेन) दुकूले (पीताम्बरे) विचकर्ष (आकृष्टवती) ॥5॥
संबंधित लेख
सर्ग | नाम | पृष्ठ संख्या |