गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 109

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ चतुर्थ सन्दर्भ
4. गीतम्

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जहाँ श्रीराधा जी अपनी सखी के साथ विद्यमान हैं, उनसे थोड़ी ही दूर श्रीकृष्ण केलिपरायण तथा विलासयुक्त नायिकाओं के समूह में विलासविहार कर रहे हैं, जिसे देखकर राधा जी के मन में भी श्रीकृष्ण के साथ रमण करने की लालसा जाग उठती है। श्रीकृष्ण निकुञ्जवन में किसी व्रजसुन्दरी को आलिंगन करते हैं तो कृष्ण के हृदय में राधा जी की स्फूर्त्ति होने लगती है ॥1॥

मुग्ध मुग्ध शब्द मुग्धा नायिका के भेद तथा सुन्दर दोनों का वाचक है। मुग्ध के ये दोनों ही अर्थ यहाँ अभिप्रेत हैं। विलास एक हाव भावविशेष का नाम है। नाट्यशास्त्र में भरतमुनि ने कहा है-

स्थाने यानासने वापि नेत्र वक्त्रादि कर्मणा।
उत्पाद्यते विशेषो य: स विलास: प्रकीर्त्ति:॥


अर्थात चलते, बैठते तथा यात्रा करने के समय नेत्र एवं मुख आदि की क्रिया और भंगी के द्वारा जो मनोहर चेष्टा होती है, वही विलास शब्द से अभिहित है।

स्मित श्रीकृष्ण मुस्करा रहे हैं। ईषत् हास को स्मित कहते हैं। भरत मुनि के शब्दों में-

ईषद् विकसितैर्गण्डै: कटाक्षै: सौष्ठवान्वितै:।
अलक्षितद्विजं धीरमुत्तमानां स्मितं भवेत्॥


अर्थात जो व्यक्ति मुस्कराता है, उसके दाँत दिखलायी नहीं पड़ते हैं। स्मित में मनोहर कटाक्ष के द्वारा कपोल थोड़े विकसित अवश्य हो जाते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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