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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ तृतीय सन्दर्भ
3. गीतम्
स्फुरदतिमुक्तालता-परिरम्भण-पुलकित-मुकुलित चूते अनुवाद- हे सखि! चपल मुक्तालता के आलिंगन से युक्त मुकुलित (मंजरियों से पूर्ण) तथा रोमांचित आम्रवृक्षों से युक्त वृन्दाविपिन के सन्निकट प्रवाहमाना यमुना के पावन जल में श्रीहरि युवतियों के साथ परस्पर मिलित होकर विहार कर रहे हैं ॥7॥ पद्यानुवाद बालबोधिनी- इस वासन्तिक काल में चेतन के साथ जड़ पदार्थ भी काम से विकृत देखे जा सकते हैं। समीरण के वश हुई अतिमुक्तालता (माधवीलता) ने जब आम्रवृक्ष का आलिंगन किया तो वह मुकुलित और रोमांचित हो गया। सन्निकट में प्रवाहित होने वाली यमुना के जल से पवित्र वृन्दाविपिन में श्रीकृष्ण केलिक्रीड़ा कर रहे हैं ॥7॥
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- स्फुरदतिमुक्तालता-परिरम्भण-पुलकित-मुकुलित-चूते (स्फूरन्तीनां आकम्पितानाम् अतिमुक्तालतानां माधवीलतानां परिरम्भणेन आलि नेन पुलकिता: जातरोमांचा: इव मुकुलिता: ईषद्रविकसितमुकुला: चूता: रसाला: यत्र तादृशे) [यथा कश्चित् वरानालि ति: जातरोमांचो भवति तथेति भाव:]; [तथा] परिसर-परिगत-यमुना-जलपूते (परिसरेषु पर्यन्तभूमिषु प्रान्तेषु इत्यर्थ: परिगता प्राप्ता या यमुना तस्या: जलै: पूते पवित्रीकृते सुशोभिते इति तात्पर्यार्थ:) वृन्दावन-विपिने (वृन्दावन-कानने) [सरसवसन्ते हरि: इत्यादि] ॥7॥
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