गीता 6:22

गीता अध्याय-6 श्लोक-22 / Gita Chapter-6 Verse-22

प्रसंग-


बीसवें, इक्कीसवें और बाईसवें श्लोकों में परमात्मा की प्राप्ति रूप जिस स्थिति के महत्त्व और लक्षणों का वर्णन किया गया, अब उस स्थिति का नाम बतलाते हुए उसे प्राप्त करने के लिये प्रेरणा देते हैं


यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं तत: ।
यस्मिन् स्थितो न दु:खेन गुरुणापि विचाल्यते ॥22॥



परमात्मा की प्राप्तिरूप जिस लाभ को प्राप्त होकर उससे अधिक दूसरा कुछ भी लाभ नहीं मानता और परमात्म प्राप्ति रूप जिस अवस्था में स्थित योगी बड़े भारी दु:ख से भी चलायमान नहीं होता। ॥22॥

And having obtained which he does not reckon any other gain as greater than that, and established in which he is not shaken by the heaviest of sorrows. (22)


यम् = (परमेश्वर की प्राप्ति रूप ) जिस लाभ को; लब्ध्वा = प्राप्त होकर; तत: =उससे; अधिकम् =अधिक; अपरम् = दूसरा(कूछ भी ) लाभम् = लाभ; न = नहीं; मन्यते = मानता है; यस्मिन् = (भगवतत्याप्राप्ति रूप) जिस अवस्था में; स्थित: = स्थित हुआ योगी; गुरुणा = बड़े भारी; दु:खेन = दु:ख से; अपि = भी; न विचाल्यते = चलायमान नहीं होता है



अध्याय छ: श्लोक संख्या
Verses- Chapter-6

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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