गीता 2:29

गीता अध्याय-2 श्लोक-29 / Gita Chapter-2 Verse-29

प्रसंग-


इस प्रकार आत्म तत्त्व के दर्शन, वर्णन और श्रवण की अलौकिकता और दुर्लभता का प्रतिपादन करके अब, 'आत्मा नित्य की अवध्य है; अत: किसी भी प्राणी के लिये शोक करना उचित नहीं है'- यह बतलाते हुए भगवान् सांख्य योग के प्रकरण का उपसंहार करते हैं|


आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन
माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्य: ।
आश्चर्यवच्चैनमन्य: श्रृणोति
श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित् ॥29॥




कोई एक महापुरुष ही इस आत्मा को आश्चर्य की भाँति देखता है और वैसे ही दूसरा कोई महापुरुष ही इसके तत्त्व का आश्चर्य की भाँति वर्णन करता है तथा दूसरा कोई अधिकारी पुरुष ही इसे आश्चर्य की भाँति सुनता है और कोई-कोई तो सुनकर भी इसको नहीं जानता ॥29॥


Hardly anone perceives this soul as marvelous, scarce another likewise speaks thereof marvelous, and scarce another hears of it as marvelous; while there are some who know it not even on hearing of it.(29)


कश्चित् = कोई (महापुरुषद्ध ही ; एनम् = इस आत्माको ; आश्चर्यवत् = आश्चर्यकी ज्यों ; पश्यति = देखता है ; च = और ; तथा = वैसे ; एव = ही ; अन्य: = दूसरा कोई (महापुरुष) ही ; आश्चर्यवत् = आश्चर्यकी ज्यों (इसके तत्त्वको) ; वदति = कहता है; च = और ; अन्य: = दूसरा (कोई ही) ; एनम् = इस आत्माको ; आश्चर्यवत् =आश्चर्यकी ज्यों ; श्रृणोति = सुनता है ; च = और ; कश्चित् = कोई कोई ; श्रुत्वा = सुनकर ; अपि = भी ; एनम् = इस आत्माको ; न एव = नहीं ; वेद = जानता



अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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